गोपीनाथ गोपेश्वर
गोपीनाथ मंदिर की पौराणिकता
उत्तराखंड के चमोली जिले के गोपेश्वर क्षेत्र में स्थित भगवान शिव को समर्पित गोपीनाथ मंदिर के बारे में अनेक धार्मिक एवम् पौराणिक तथ्य है | पुराणों में गोपीनाथ मंदिर भगवान शिवजी की तपोस्थली थी | इसी स्थान पर भगवान शिवजी ने अनेक वर्षो तक तपस्या करी थी और कामदेव को भगवान शिवजी के द्वारा इसी स्थान पर भस्म किया गया था | यह भी कहा जाता है कि देवी सती के शरीर त्यागने के बाद भगवान शिव जी तपस्या में लीन हो गए थे और तब “ताड़कासुर” नामक राक्षस ने तीनों लोकों में हा-हा-कार मचा रखा था और उसे कोई भी हरा नहीं पा रहा था |
तब ब्रह्मदेव ने देवताओं से कहा कि भगवान शिव का पुत्र हीताड़कासुर को मार सकता है | उसके बाद से सभी देवो ने भगवान शिव की आराधना करना आरम्भ कर दिया लेकिन तब भी शिवजी तपस्या से नहीं जागे , फिर भगवान शिव की तपस्या को समाप्त करने के लिए इंद्रदेव ने यह कार्य कामदेव को सौपा ताकि शिवजी की तपस्या समाप्त हो जाए और उनका विवाह देवी पारवती से हो जाए और उनका पुत्र राक्षस “ताड़कासुर”का वध कर सके | जब कामदेव ने अपने काम तीरो से शिवजी पर प्रहार किया तो भगवान शिव की तपस्या भंग हो गयी तथा शिवजी ने क्रोध में जब कामदेव को मारने के लिए अपना त्रिशूल फैका , तो वो त्रिशूल उसी स्थान में गढ़ गया जहाँ पर वर्तमान समय में गोपीनाथ मंदिर स्थापित है | इसी कारण इस मंदिर की स्थापना हुई |
इसके अल्वा एक और कथा के अनुसार इस क्षेत्र में राजा सागर का शासन था और वर्तमान समय में गोपेश्वर के निकट“सागर” नामक एक गाँव है , जिसका नाम राजा के नाम पर रखा गया है | स्थानीय लोगों के अनुसार उस समय एक अजीब घटना घटी , जब इस स्थान में एक गाय प्रतिदिन इस स्थान में आया करती थी और गाय के स्तनों का दूध अपने आप यहाँ गिरने लगता था , एक दिन राजा को इस बात का पता लगा तो राजा ने सिपाहियों के साथ गाय का पीछा किया और इस घटना को देखकर राजा आश्चर्यचकित हो गया कि गाय के स्तानो से दूध की धारा खुद ही बह कर निकट स्थापित शिवलिंग पर जा रही है , इस घटना को देखकर राजा ने उस पवित्र स्थान पर मंदिर का निर्माण किया |
गोपीनाथ मंदिर का महत्व
भगवान गोपीनाथ जी के इस मन्दिर का महत्व बहुत ही विशेष है । इस मन्दिर में शिवलिंग, परशुराम, भैरव जी की प्रतिमाएँ विराजमान हैं | मंदिर के गर्भ गृह में शिवलिंग स्थापित है और मंदिर से कुछ ही दूरी पर “वैतरणी नामक कुंड” स्थापित है , जिसके पवित्र जल में स्नान करने का विशेष महत्व है ।
एक मान्यता के अनुसार जब भगवान शिव ने कामदेव को मारने के लिए अपना त्रिशूल फेंका तो वह इसी स्थान में गढ़ गया था । त्रिशूल का धातु वर्तमान में इसी स्थान में स्थित है , त्रिशूल के धातु का सही ज्ञान तो नहीं हो पाया है परंतु इतना अवश्य है कि यहअष्ट धातु का बना होगा , त्रिशूल पर कोई भी मौसम प्रभावहीन है और वर्तमान समय में यह एक आश्वर्यजनक बात है । यह भी मान्यता है कि कोई भी मनुष्य अपनी शारीरिक शक्ति से त्रिशूल को हिला भी नहीं सकता है , यदि कोई सच्चा भक्त त्रिशूल को कोई सी ऊँगली से छू लेता है , तो उसमे कम्पन पैदा होने लगती है |
यह मंदिर इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्यूंकि इसी स्थान परभगवान केदारनाथ के मुखभाग रुद्रनाथ जी की उत्सव मूर्ति शीतकाल में विराजमान होती है | भगवान केदारनाथ जी केमुखभाग रुद्रनाथ जी के मंदिर में प्रतिदिन भव्य पूजा की जाती है |
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